यदि महिला घर कि चारदिवारी से बहार आ रही है तो यह उसका संकल्प शक्ति का परिणाम है।
शिक्षा का दामन थाम कर स्त्रियों के सामने होने का सपना तो देखने लगा, लेकिन अपनी आर्थिक व सामाजिक रूप बदलने से सदियाँ गुजर रही हैं। पहले ये मान्यता थी कि स्त्रियाँ अगर कमाएगी नहीं पुरुषों का मुँह देखेंगी तो गुलाम ही है।
- News18Hindi
- आखरी अपडेट:29 जनवरी, 2021, 11:41 PM IST
परिणाम है मुक्ति कि चाह ने राह बनाई है जिस पर उस अनुकूलन का परदा हटता जा रहा है।
स्त्री सशक्तीकरण कि बात करते हुए बहुत सारी अत्मन्नीयता को छुपाया जा रहा है। कथनी व करनी में बहुत अंतर है। समाज में महिलाओं के साथ दोहरा मापदंड अपनाया जाता है।
शिक्षा का दामन थाम कर स्त्रियों के सामने होने का सपना तो देखने लगा, लेकिन अपनी आर्थिक व सामाजिक रूप बदलने से सदियाँ गुजर रही हैं। पहले ये मान्यता थी कि स्त्रियाँ अगर कमाएगी नहीं पुरुषों का मुँह देखेंगी तो गुलाम ही है। अब आर्थिक आत्मनिर्भरता पाने के बाद भी महिलाएं कितनी सशक्त हुई है इस पर एक नजर डालें।जोटाइप्रेट परिवारों में कमाऊ स्त्री का अपनी आमदनी पर पूर्ण अधिकार तक नहीं है। मनमर्जी के खर्चों पर अनकही निषेधाज्ञा लगी रहती है। विभिन्न संस्थानों में कार्यरत स्त्रियों के अनुसार कार्यस्थल पर भी उनके शरीर पुरुषों के निशाने पर रहता है। ज्यादातर पुरुषों का नजरिया स्त्रियों से मेल नहीं खाता है। अगर मेल खाता है तो पुरुष पुरुष को मां बहन कि गालियां नहीं देती हैं।
सामने पुलिस है, फोन सेवा है, बसों में सीसीटीवी कैमरों का एलान है फिर भी औरतों के साथ रोज अभद्रता कि जाती है। स्त्री अब जौहर व्रत कि चिंता में नहीं बैठाई जाती है उसकी सरेआम हत्या की जाती है। यही कारण है कि आज शिक्षित जोड़ा भी बेटी पैदा कर दहशत में आ जाता है।
(डिस्क्लेमर: यह लेखक के निजी विचार हैं।)